अन्ना हजारे नेता नहीं, जननेता हैं

शायद जयप्रकाश नारायण और कुछ अंशों में विश्वनाथ प्रताप सिंह के बाद देश के किसी नेता को जनता का इतना प्यार नहीं मिला होगा, जितना अन्ना हजारे को मिला है. मुझे लगा कि अन्ना हजारे के साथ कुछ समय बिताया जाए, ताकि पता चले कि जनता उन्हें किस नज़रिए से देखती है और उन्हें क्या रिस्पांस देती है. मैं अन्ना हजारे के साथ लगभग तीस घंटे से ज़्यादा रहा. उनके साथ दिल्ली से गुवाहाटी गया. गुवाहाटी में वह लोगों से मिले. वहां उन्होंने रैली को संबोधित किया और मैं फिर वापस दिल्ली आ गया. वे तीस घंटे का़फी अद्भुत रहे. मैं दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुंचा तो मैंने देखा कि अन्ना हजारे अकेले अपना सामान लिए हुए प्रवेश द्वार से दाखिल हुए. उनके दाखिल होते ही दस-पंद्रह लोग उनकी तऱफ दौड़े और उनके हाथों से उन्होंने सामान ले लिया. सामान जैसे ही उन्होंने लिया, अन्ना हजारे ने उन्हें मना करने की कोशिश की, पर वे लोग नहीं माने. तब तक अन्ना हजारे ने मुझे देख लिया और वह धीरे-धीरे मेरी ओर बढ़े, मैं भी उनकी ओर बढ़ा. उन्होंने मुझसे पूछा, आपकी सीट कहां है? मैंने उन्हें बताया कि मेरी सीट और आपकी सीट बिल्कुल आसपास है. उन्होंने कहा कि कैसे? तो मैंने कहा कि एयरलाइंस वालों को आपका नाम देखकर अंदाज़ा हो गया था कि आप गुवाहाटी जाने वाले हैं, इसलिए उन्होंने आपको पहली ही क़तार में सीट दी.

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