भारत में लोकतंत्र की इतनी दुर्दशा आज़ादी के बाद कभी नहीं हुई थी. संसदीय लोकतंत्र में राजनीतिक दलों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है, लेकिन विडंबना यह है कि आज संसदीय लोकतंत्र को चलाने वाले सारे दलों का चरित्र लगभग एक जैसा हो गया है. चाहे कांग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी या अन्य राजनीतिक दल, जिनका प्रतिनिधित्व संसद में है या फिर वे सभी, जो किसी न किसी राज्य में सरकार में हैं, सभी का व्यवहार सरकारी दल जैसा हो गया है. इसीलिए उन सवालों पर जिनका रिश्ता जनता से है, सभी दल एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं और आम जनता के हित के खिला़फ खड़े दिखाई दे रहे हैं. जनता से सीधा जुड़ा सवाल भ्रष्टाचार का है.